मुजफ्फरनगर- जलते चौराहों, सुलगते अंधेरों का सच

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मैं मुजफ्फरनगर हूँ. आप सभी पिछले कई दिनों से मेरी खोज खबर निकालने के लिए परेशान हैं तो मैं खुद भी अपने जलते बदन, सुलगते जख्मों को अनदेखा करते हुए आप के सामने पेश होने आया हूँ. इल्जाम तो कई हैं मुझ पर. जैसे मैंने पूरे प्रदेश को साम्प्रदायिक हिंसा की आग में झोंक दिया है. कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि मुजफ्फरनगर के इतिहास में यह आम बात है. और भी न जाने कितने तरीके के इल्जाम मेरे ऊपर लग रहे हैं. काश! इल्जाम लगाने वाले यह भी सोच लेते कि बुरे वक्त की आग में जलता एक शहर उनके इल्जामों से और जलन महसूस करेगा. खैर अपना बयान देने आया हूँ. कोशिश करूंगा हर वो बात जो जानने लायक है आप तक पहुँचाऊं. आप के बीच आने का एक बड़ा कारण यह भी था कि सूचना क्रांति के दौर में आधी अधूरी जानकारी देने वालों की जबान पर लगाम लगा सकूँ.

मैं छोटा सा एक जिला हूँ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का. आबादी की बात करें मिली जुली आबादी है. कहीं मुस्लिम अधिक हैं तो कहीं हिन्दू. हिन्दुओं में भी जाट बहुत इलाका है. पहले कभी सोचा नहीं था कि मेरे बाशिंदों को उनके धर्म के नाम से गिना जायगा लेकिन खैर! अब तो कह रहे हैं जाति के आधार पर भी गणना चल रही है. हो भी क्यों न? बात धर्म और जाति की होगी तो राजनेताओं को काम करने की बजाय धर्म की चार बातें करने पर वोट जो मिल जाते हैं.

पिछले कुछ दिनों से जलते मकानों, जलती दुकानों के धुंए से परेशान हूँ. बीच बीच में चलती गोलियां भी सिरदर्द बढ़ा रही हैं. सेना आई तो है मगर गोलियों की गडगडाहट का स्थान अब बूटों की खडखडाहट ने ले लिया है और मैं न तब सो पाता था न अब सो पाता हूँ.

गौर से देखूं तो कारण समझ में नहीं आता कहाँ से शुरू हुआ यह सब. अखबार तो यह कह रहे हैं कि मेरे एक गाँव के कुछ जवान लडको ने मेरी अपनी किसी बेटी से बदतमीजी की. पुलिस ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की तो लड़की के भाइयों ने आरोपी लड़के को उसी के मोहल्ले में जाकर धमकाया. बात आगे बढ़ी हाथापाई तक पहुंची तो लड़की के भाइयों ने उस लड़के को छुरा घोंप दिया. बाद में लड़की के भाइयों को भीड़ ने मार दिया. मेरे लिए यह कोई नई बात नही थी. यह तो ऐसे इलाकों में रोज होता है जहाँ के लोग आन बान शान के नाम पर जान देने को उतारू हों और प्रशासन निकम्मा हो. ऐसे में लोग अपने झगडे अक्सर सड़कों पर ही सुलझा लेते हैं. नतीजा मारपीट, गोलीबारी, ह्त्या में से कुछ भी हो सकता है. शायद इसीलिए अखबार कहते हैं कि एशिया में मुजफ्फरनगर का अपराध सूचकांक सबसे अधिक है. खैर!

यहाँ तक मामला पूरे तरीके से दो परिवारों के बीच में था यदि दो अलग अलग समुदायों के नेता दोनों परिवारों की तरफ से लड़ने के लिए ना आते. दो अलग समुदायों के परिवारों के पैरोकार दो अलग पार्टियों के नेता बने तो अनजान सी लड़की की छेड़छाड़ का मामला हिन्दू और मुस्लिम अस्मिता का मामला बना दिया गया. महापंचायत के बुलाने की बात हुई. प्रशासन एक बार फिर मौन था. सुरक्षा के इंतजाम नहीं किये गए. महापंचायत हुई. दो घरों की लड़ाई को सुलझाने पूरे प्रदेश से 70000 लोग आये. नहीं नहीं! वो दो घरो की लड़ाई सुलझाने नहीं आये थे वो तो अपने धर्म की अस्मिता बचाने आये थे. महापंचायत के बाद तनाव बढ़ा, जाते हुए काफिले पर पत्थरबाजी हुई. नतीजा आप सबके सामने है.

अखबार कह रहे हैं २५ लोग मरे हैं. टीवी कह रहा है ३० मरे हैं. यह कोई नही कह रहा कि जिन धर्मों को बचाने का दावा ये सियासती पैरोकार कर रहे थे वो दोनों धर्म भी मरणासन्न हालत में मेरे चौराहों पर पड़े हैं. कोई तो आये अब उन्हें बचाने. अब कोई नही आएगा. क्योंकि अन्दर की तस्वीर केवल मैं जानता हूँ.

सियासत की बुरी नजर लगी है मुझे. आधी आधी आबादी दो अलग अलग धर्मों की होने के कारण मेरी राजनीति जो कभी मुद्दों पर चला करती थी, अब ध्रुवीकरण की मोहताज बनकर रह गई है. इन दंगों का दोष तो महापंचायत को दिया जा रहा है लेकिन मुझे याद आते हैं वो दौर जब अग्रेज सरकार ने मेरे बाजार में स्थित एक मस्जिद को ढाने का फैसला लिया था तो ऐसी ही महापंचायत कर हिन्दुओं ने उस मस्जिद की रक्षा की कसम ली थी और २७ लोगो की शहादत के बाद अंग्रेज सरकार हार गई थी. आज भी वह मस्जिद अपनी जगह कायम है. ऐसे में वही लोग क्यों आपस में लड़ने लगे. तह में सियासत है.

बात अभी की करूँ तो सेना के बूटों तले सांस रोके पडा हूँ. जख्मों की जलन ना दिन को सोने देती है ना रात को. कर्फ्यू में घरों से रोते बच्चों की आवाजें कानों को परेशान कर रही है. आखिर घरों में राशन पानी जाने के लिए भी तो कर्फ्यू खुलना चाहिए. बस दुआ कीजिये कि सियासत के पेट की भूख मिट गई हो. ठीक हो जाऊँगा तो फिर आउंगा आप सब के बीच अभी तो इजाजत दीजिये. गोलियों की आवाज मेरा इन्तजार कर रही है.

-आपका अपना मुजफ्फरनगर

About Satish Sharma 44 Articles
Practising CA. Independent columnist in News Papers. Worked as an editor in Awaz Aapki, an independent media. Taken part in Anna Andolan. Currently living in Roorkee, Uttarakhand.

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