परवाह किसे है?

हम सब अपनी ज़िंदगी में बहुत सी चीज़ों की परवाह भी करते हैं और जाने अनजाने बहुत सी चीज़ों की परवाह ना करने का निर्णय भी लेते हैं। यक़ीन मानिए आपकी ज़िंदगी का रूख वही चीज़ें तय करती हैं जिन चीज़ों की आप परवाह नहीं करते।

हम अक्सर लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आत्मविश्वास की अकेली कुंजी यह है कि आप किसी की परवाह ना करें। कामयाब लोगों की कामयाबी इस बात से तय होती है कि वे दूसरों की कितनी बात मानते हैं, कितनी परवाह करते हैं। इस बात की बहुत सम्भावना है कि आप अपने आसपास किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हों जिसने किसी ना किसी समय पर परवाह नहीं कि लोग क्या कहेंगे, कि क्या होगा, कि वह कामयाब होगा या नहीं, कि उसे कुछ नुक़सान तो नहीं हो जायगा, कि कहीं वह दूसरों से अलग जाकर ग़लत तो नहीं कर रहा, और आज वह आपके सामने खड़ा है….. भल्लाल के सामने अमरेन्द्र की प्रतिमा की तरह।

इस बात की भी सम्भावना है कि आप बहुत से ऐसे व्यक्तियों को भी जानते हों जो लगातार यही सोचते रहे कि क्या यह सही है? क्या सब इसे सही मानेंगे? क्या यह बात मेरे परिवार को हज़म होगी? क्या मैं सफल हो पाउँगा? और वे आज भी अमरेन्द्र की प्रतिमा खींचने वाली भीड़ में शामिल हों। यक़ीनन दूसरी तरह के लोग ज़्यादा होंगे।

आख़िर ऐसा क्यों है? दूसरों की बात नज़रंदाज करके अपने मन की करना इतना मुश्किल क्यों है? ख़ुद पर विश्वास करने के मुक़ाबले दूसरों पर विश्वास करना इतना आसान क्यों लगता है? शायद इसके मूल में सबके द्वारा स्वीकारे जाने की, सराहे जाने की मानवीय इच्छा हो। वैसे भी हम लोग समूहों में ज़्यादा सुरक्षित ज़्यादा बेहतर महसूस करते हैं। सब हमें पसंद करें इस से बेहतर और क्या हो सकता है?सोशल मीडिया पर हमारा बर्ताव इस बात का गवाह है। हमें इच्छा है कि सब हमारे बारे में अच्छा ही सोचें। इसमें वे लोग भी शामिल हैं जो सोशल मीडिया से दूर रहते हैं।

पहला व्यक्ति:- अरे तुम आजकल फ़ेसबुक पर काम आते हो।

दूसरा व्यक्ति:- मैं वास्तविक ज़िंदगी में ज़्यादा यक़ीन करता हूँ। (भावार्थ:- मैं असली ज़िंदगी जी रहा हूँ, तुम नक़ली। मेरे पास ज़्यादा असली बातें है इसलिए मुझे पसंद करो।)

परवाह ना करना बड़ा साधारण और आसान महसूस होता है लेकिन हक़ीक़त में यह कहीं ज़्यादा मुश्किल है। हम लोग अपनी ज़िंदगी का अधिकांश समय ऐसे मामलों में परवाह करते हुए गुज़ार देते हैं जहाँ बिना परवाह किए भी ज़िंदगी को जिया जा सकता था। हम ऐसी ऐसी बातों के बारे में सोचते हैं जिनको सोचे बिना भी आज से आने वाले कल तक का सफ़र किया जा सकता था। हँसते हँसते…..

आज अख़बार समय से नहीं आया……. टेंशन।

हमें भारत पाकिस्तान मैच देखना था और मम्मी/पत्नी को सास बहु का सीरीयल……..टेंशन।

सुबह सुबह बारिश हो गई और मेरी जॉगिंग का प्लान एक बार फिर ……टेंशन।

 

बस यहीं समस्या है। हम हर बात की परवाह करते हैं और हर चीज़ को परफ़ेक्ट देखना चाहते हैं ताकि ज़िंदगी बेहतर तरीक़े से जी जा सके और इसी जद्दोजहद में ज़िंदगी ख़राब कर लेते हैं। हर छोटी बड़ी बात की परवाह करना हमसे परवाह करने की ताक़त छीन लेता है और हमें जिन चीज़ों की परवाह करनी चाहिए उनकी परवाह हम नहीं कर पाते। छोटी बातों की परवाह ना करना ज़िंदगी को ज़्यादा आसान बनाएगा और हँसी को ज़्यादा सुलभ।

लेकिन हम यह नहीं समझ पाते कि दरअसल परवाह ना करना एक कला है, एक चुनाव है। प्रकृति ने हमें ऐसा पैदा नहीं किया है, इसके लिए सोची समझी कोशिश की ज़रूरत है। बच्चों को देखिए, हर छोटी बड़ी बात पर वे आँखें भर लेते हैं, रोने लगते हैं। जब कोई बच्चा लाल रंग की गुड़िया की बजाय गुलाबी रंग की गुड़िया लेकर रोने लगता है कयोंकि गुड़िया का रंग वह नहीं है जो उसे चाहिए तो आप क्या करते हैं? परवाह नहीं करते? बस! इसी तरह आपको बाक़ी लोग देखते हैं। दूसरे किसी व्यक्ति को फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप क्या महसूस कर रहे हैं? (कड़वा लग रहा है? गटक लीजिए, सच ऐसा ही होता है।)

किस चीज़ की परवाह करनी है और किस चीज़ की परवाह नहीं करनी यही चुनाव आपके स्वभाव, आपके दोस्त, आपके सहकर्मी, आपके परिवार के आपको लेकर बर्ताव का निर्धारण करता है। छोटी छोटी चीज़ों की परवाह ना करना बड़ा आसान महसूस होता है लेकिन यह इतना आसान नहीं। अगली बार थोड़ी फीकी चाय मिली तो? पकोड़े में तेल ज़्यादा हुआ तो? इनकम टैक्स रीफ़ंड समय से नहीं आया तो? सहकर्मी ने किसी काम में देरी कर दी तो? प्रतिक्रिया देने से पहले सोचिएगा कि क्या इस प्रतिक्रिया को देकर कुछ बेहतर होगा? जवाब हाँ में मिले तो आगे बढ़िए वरना परवाह क्यों करनी?

ख़ैर! हर मुश्किल काम की तरह परवाह ना करना भी एक जटिल काम है इसलिए कुछ नियमों को ध्यान में रखिए:-

1. परवाह ना करने का मतलब यह नहीं है कि आपको फ़र्क़ ही नहीं पड़ता। किसी बात से कोई फ़र्क़ ही ना पड़ना परवाह करने से ज़्यादा बुरा है। परवाह ना करने का मतलब केवल यह है कि इतनी छोटी बात से मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता। मेरी ज़िंदगी किसी एक घटना से बड़ी है। मेरे ग़ुस्से और हँसी का रिमोट किसी दूसरे व्यक्ति के हाथ में नहीं है और मेरी किसी भी प्रतिक्रिया के लायक घटना का निर्धारण मैं करूँगा कोई और नहीं। परवाह ना करने का मतलब केवल इतना है कि मैंने चुनाव कर लिया है कि किस स्तर पर जाकर मुझे परवाह करनी है, इस से छोटी या अलग हर घटना मेरे लिए बेकार है, यह मेरे लक्ष्य से बाहर है। इस तरह आप अपने लक्ष्य के लिए ज़्यादा बेहतर तरीक़े से काम करते हैं और आसान ज़िंदगी जीते हैं।

2. छोटी बातों की परवाह ना करने से पहले आपको वे बड़ी बातें चुननी होंगी जिनके लिए आप परवाह करते हैं। यह एक चुनाव है। हर छोटी बात पर प्रतिक्रिया देने वाले बड़ी चीज़ों पर ध्यान नहीं दे पाते। लोग अपनी ज़िंदगी की बड़ी बातों पर ध्यान देते हैं जब उनकी ज़िंदगी में बड़ी बातें हों, वे अपनी ज़िंदगी की छोटी बातों पर ध्यान देते हैं जब उनकी ज़िंदगी में बड़ी बातें ना हों, और वे दूसरों की ज़िंदगी पर ध्यान देते हैं जब उनकी अपनी ज़िंदगी ही ना हो। चुनाव आपका है। अपना स्टैंडर्ड आपको तय करना है।

3. ज़्यादा चीज़ों की परवाह करने का मतलब है आप किसी चीज़ की परवाह नहीं करते। याद कीजिए जब आप स्कूल कॉलेज में थे। किसी से बात करने की जल्दी थी किसी से बचने की बेचैनी, कभी कपड़ों के स्टाइल को लेकर चिंता थी कभी अपनी बातचीत के लहजे को लेकर टेंशन। क्या आज उन सब चीज़ों से कोई फ़र्क़ पड़ता है? नहीं। जिन लोगों की आप उस समय परवाह करते थे आज उनमें से अधिकतर लोग आपकी ज़िंदगी में नहीं हैं, बहुत से लोग केवल नाममात्र को आपकी ज़िंदगी में होंगे। ऐसा ही कुछ अब से दस साल बाद आप महसूस करेंगे।

तो अपना स्तर तय कीजिए और सोचिए कि कम से कम क्या वह स्तर होगा जब आप परवाह करेंगे? परवाह ना करना उद्देश्य नहीं है, छोटी घटनाओं की परवाह ना करना उद्देश्य है। ज़िंदगी आपकी है चुनाव आपका है, अपने नियमों पर जिएँगे तो अपनी लगने भी लगेगी।

About Satish Sharma 44 Articles
Practising CA. Independent columnist in News Papers. Worked as an editor in Awaz Aapki, an independent media. Taken part in Anna Andolan. Currently living in Roorkee, Uttarakhand.

5 Comments

  1. वाह बहुत अच्छा लिखा है . मुझे आपकी परवाह है ये लिखूं या आप मेरे आत्मीय हैं ये लिखूं . अति सुन्दर .बधाई

  2. zindgi ko buhut kareeb se dekhne aur sochne ka nazariya buhut khoob hai sir apko.

    aise hi acha koi aur nhi likh sakta.
    grear personality you are . keep writing

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