ओशो नानक की एक मुलाकात…

सबै सयाने एक मत…..

सूफी संत फ़कीर एक मत के होते हैं एक साथ रहते हैं…

लेकिन आज नानक अल्लाह के घर आये…. यूँ तो वे हमेशा से अल्लाह के घर में थे… लेकिन आज आने का मकसद कुछ और था….

बिलकुल वैसे ही जैसे छः सौ साल बाद अस्सी के दशक में ओशो नानक के घर आये. स्वर्ण मंदिर..

नानक स्वयं गए थे एक उद्देश्य से…

ओशो को नानक पर ‘एक ओंकार सतनाम’ जैसी कालजयी किताब के प्रकाशन के बाद सिख धर्म के अलंबरदारों की ओर से सरोपा देकर सम्मानित करने के लिए बुलाया गया था… उद्देश्य उनके पास भी था..

नानक जमीन पर लेटे हुए थे… काबे की ओर पैर कर के….

ओशो स्वर्ण मंदिर के बाहर खड़े थे…. नंगे सर….

दोनों उसकी अवहेलना कर रहे थे जिसकी वे पूजा करते थे. क्योंकि प्रतीकों पर प्रहार हमेशा जरुरी है.

नानक को अल्लाह के मौलवी ने टोका “काबे की ओर पैर रख के नहीं लेट सकते.”

ओशो को नानक के मौलवियों ने टोका था “आप नंगे सर अन्दर नहीं जा सकते.”

नानक के कहा “तो भाई मेरे पैर उधर कर दे जहाँ काबा न हो…”

ओशो ने सवाल उठाया “तो क्या यहाँ नंगे सर खड़े रह सकते हैं? क्या यहाँ गुरु साहिब की जगह नहीं? क्या यहाँ गुरु साहिब को नहीं दिखता? क्या आप लोग हमेशा सर ढके रहते हो? नहाते वक्त भी?”

कहने वाले कहते हैं मौलवी ने नानक के पैर उठाकर घुमाने शुरू किये तो काबा भी अपनी जगह बदलकर नानक के पैरों की तरफ ही घूमता रहा.

बताने वाले यह भी बताते हैं कि ओशो बिना सम्मान लिए स्वर्ण मंदिर के बाहर से ही लौट आये.

क्या सचमुच काबा नानक के पैरों की दिशा में घूमा होगा? क्या वाकई काबा को घूमना जरुरी है? या काबा का घूमना संभव है? अगर नहीं तो क्या नानक के महिमामंडन में अतिशयोक्ति का सहारा लिया जाता है? क्या नानक को किसी चाटुकार के महिमामंडन की आवश्यकता है? तो महिमामंडन किसलिए? ‘अपने’ धर्म को बड़ा बताने के लिए? तो क्या हमारा अहम् इतना बड़ा है कि सच कहने वाले महापुरुष के आसपास झूठी गाथाओं का घेरा खड़ा करने में भी हम हिचकते नहीं. उद्देश्य वही है जो अल्लाह के मौलवी का था ‘मेरा अल्लाह/नानक सबसे अलग है. उसकी ओर पैर मत करो. उसके सामने नंगे सर मत जाओ. उसे प्यार करो या न करो लेकिन उस से डरो जरुर. तुम नहीं डरोगे तो हम डरायेंगे.’ अन्यथा क्या जरुरत है धर्म को पहरेदारों की? लेकिन हर धर्म के अपने पहरेदार है.

क्या ओशो की कथा हमेशा ऐसे ही सुनाई जाती रहेगी? क्या किसी दिन यह नहीं होगा कि यह कथा दूषित हो जाए. क्या इस कथा में हमेशा ओशो नानक के दरबार से वापिस ही आयेंगे? शायद नहीं. शायद 2050 आते आते इस कथा में यह जोड़ा जाने लगे कि ‘उसके बाद नानक के मौलवियों ने अपनी गलती मानी और ओशो को अन्दर जाने दिया’. शायद 2150 आते आते यह कहा जाने लगे कि ‘तभी ओशो को रोकने वाले सरदार जी को नानक के दर्शन हुए और उन्होंने ओशो आने देने का आदेश दिया.’ शायद उसके सौ साल बाद यह कहा जाने लगे कि ‘जब ओशो वापिस आने लगे तो नानक अपने देहधारी स्वरूप में हाथ में गुरु ग्रन्थ साहिब उठाये आये और ओशो को खुद अन्दर लेकर गए.’

कहानी में कोई भी बदलाव आये लेकिन भक्त वही रहने वाले हैं. नानक के समय अल्लाह के मौलवी पोंगापंथी में फंस चुके थे. ओशो के समय नानक के मौलवी कट्टरपंथ की शरण में आ गए थे. शायद कुछ समय बाद ओशो के अपने मौलवी पैदा हो जाएँ.

एक राजा के घर बच्चा पैदा हुआ. पंडित जी आये. उन्होंने बताया कि यह बच्चा बड़ा होकर राजकाज नहीं संभालेगा बल्कि यह सन्यासी बनेगा. राजा ने जाकर अपनी पत्नी को बताया तो पत्नी ने कहा कि “यह क्या बनेगा यह पूछने की जरुरत ही नहीं थी. लेकिन अब जब उन्होंने बता ही दिया है कि यह सन्यासी बनेगा तो पंडित जी से यह जरुर पूछिए कि यह मरेगा या जिन्दा रहेगा? अगर यह जिन्दा रहेगा तो इसे इसके अपने लोग मारेंगे या गैर?”

राजा हैरान हुआ. रानी से सवालों का अर्थ पूछा. रानी के समझाया “यह जो भी बने लेकिन इसका जीवन या तो दूसरों के लिए उदहारण होगा या यह नीच जीवन जियेगा. यह नीच जीवन जियेगा तो यह बच्चा उसी दिन मर जायेगा जब इसकी मृत्यु होगी क्योंकि इसे कोई याद नहीं करने वाला. अगर इसने अच्छा जीवन जिया तो यह मरने के बाद भी जीवित रहेगा. अगर यह मरने के बाद भी जीवित रहा तो इसकी शिक्षाएं इसकी कहानियां लोग एक दूसरे को सुनायेंगे और इसका अनुसरण करने की कोशिश करेंगे. ऐसे में दो संभावनाएं हैं. या तो नीच लोग इसके खिलाफ दुष्प्रचार करें और इसके जीवन की गाथाओं को अपने प्रचार से ख़त्म कर दें.तब इसे गैर मारेंगे. दूसरी सम्भावना यह है कि इसके अपने शिष्य इसकी गाथाओं में झूठ मिला दें. इसकी कहानियों को बढ़ा चढ़ा कर बताएं. इसके आसपास झूठ का घेरा खड़ा कर के इसकी शिक्षाओं को उस घेरे में ढक दें. ऐसे में इसके अपने लोग इसे मारेंगे.”

नानक मरने के बाद भी जिन्दा रहे लेकिन उनके अपने लोगों ने उन्हें मार दिया. ओशो को मारने की उनके विरोधियों द्वारा बहुत कोशिशें हुई लेकिन वे अभी भी जिन्दा हैं. देखिये कब तक जिन्दा रहेंगे….

About Satish Sharma 44 Articles
Practising CA. Independent columnist in News Papers. Worked as an editor in Awaz Aapki, an independent media. Taken part in Anna Andolan. Currently living in Roorkee, Uttarakhand.

1 Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*