लन्दन के एक अखबार में एक खबर छपी, जिसकी महत्ता को समझने में भारतीय मीडिया को एक हफ्ता लग गया. खबर देश की विदेश मंत्री द्वारा ऐसे व्यक्ति की मदद के बारे में थी जो कथित रूप से “भगोड़ा” है. देश की मीडिया को शायद इस खबर की महत्ता एक हफ्ते बाद भी समझ में न आती अगर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश इस बारे में एक प्रेस कांफ्रेंस न बुलाते. जयराम रमेश की प्रेस कांफ्रेंस और सुषमा स्वराज के इस्तीफे की मांग के बाद तो जैसे देश की मीडिया के लिए बाकि सभी ख़बरें मर गई हों.
इसके बाद ललित मोदी के ट्वीट एक के बाद एक सुर्खियाँ बनने लगे. उनके ट्वीट फायरिंग की जद में एक के बाद एक करके सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे सिंधिया, सुधांशु त्रिवेदी और वरुण गाँधी तक आने लगे. एक बारगी तो यह लगने लगा कि लोकतंत्र में मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री केवल रबर की मोहर हैं असली ताकत तो ललित मोदी के हाथ में हैं जिनके दरबार में जाकर नेता, अभिनेता, अभिनेता से बना नेता और नेता बनकर अभिनय करता हर व्यक्ति सर झुका रहा है. बची खुची कसर ललित मोदी के वकील और अन्य लोगों से लीक होते साक्ष्य पूरी कर रहे थे. भाजपा ललित मोदी के कदमों में नजर आ रही थी और सरकार बेबस. बेशक उँगलियाँ प्रधानमंत्री पर भी उठनी थी और उठीं.
फिर अचानक एक सन्नाटा छा गया. जैसे सब कुछ शांत हो गया हो, आम जनता को लगा होगा कि ललित मोदी को या तो जंजीरों में जकड़कर भारत ले आया गया है या वे अभी रस्ते में हैं. ख़बरों से ललित मोदी गायब हो गए और ‘मुरादाबाद में कार जीप की भिडंत’ टाइप की ख़बरें खबरिया चैनलों पर तैरने लगीं. यानि एक बड़ा घोटाला जो कल तक देश की राजनीति को हिला रहा था वह अचानक अपनी मौत मर गया. अब सवाल यह है कि यह स्वाभाविक मौत थी या सुनियोजित हत्या?
किसी भी मौत के वक्त उठने वाला सवाल यहाँ भी जवाब देने में सहायक होगा इसलिए एक कोशिश करते हैं. ललित गेट की असमय मौत से किसे फायदा हुआ? भाजपा को शायद उतना फायदा नहीं हुआ क्योंकि भाजपा की छवि को जितना नुक्सान पहुंचना था वह पहुँच चुका था. कांग्रेस? शायद नहीं क्योंकि कांग्रेस के किसी नेता के तो ललित मोदी से कभी संबंध ही नहीं रहे. या रहे थे? इसका जवाब ललित मोदी का कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी के बारे में किया गया खुलासा देगा. सोनिया गाँधी के बारे में एक खुलासा होते ही जैसे ललित गेट बंद हो गया. एक गलत एंट्री और दरवाजा बंद. दोष किसे दीजियेगा?
मीडिया अपनी सुविधा से ख़बरों का चुनाव कैसे करता है इसकी एक तजा मिसाल ललित गेट है. कांग्रेस अध्यक्षा के बारे में एक खुलासा होते ही कैसे खबरें आनी बंद हो जाती है इसके कई उदाहरण जरा सी मेहनत करने पर आपको मिल जायेंगे. सबसे बड़ा उदाहरण जो मुझे याद आता है वह मनमोहन सरकार के पहले कार्यकाल के आखिरी दिनों का है. सोनिया गाँधी के पारिवारिक मित्र ओट्टावियो क्वात्रोची का नाम बोफोर्स मामले में बार बार उछलता रहा है. वे अपने भारत प्रवास के दौरान हमेशा गाँधी परिवार के मेहमान बनकर रहे यह तथ्य भी किसी से शायद ही छुपा है. उनके खिलाफ रेड कोर्नर नोटिस भी था. ऐसे में भारत सरकार द्वारा उनके लन्दन स्थित बैंक खाते अचानक से अनब्लॉक कर देना क्या एक अपराधी की मदद करना नहीं था?
लेकिन मीडिया खामोश रहा. किसी ने यह सवाल नहीं पूछा कि आखिर हथियारों के एक सौदे में एक खाद के व्यापारी को किस बात के लिए पैसा दिया गया. क्या ओट्टावियो क्वात्रोची और उनकी पत्नी के स्विस बैंक खातों में जमा रुपये की जानकारी भारत सरकार को नहीं थी? थी और यह बात रिकॉर्ड पर है. लेकिन मीडिया ने ख़बरों को अपनी सुविधा से चुना. क्रम अब भी जारी है.
गौर से देखेंगे तो उदाहरण बहुत से मिल जायेंगे. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की रैली में गजेन्द्र सिंह ने कैमरों के सामने आत्म हत्या की और खबर लम्बे समय तक चली. उत्तर प्रदेश में एक पत्रकार को जलाने के बाद उसने कैमरों के सामने एक मंत्री का नाम लिया, खबर कहीं नहीं चली. पत्रकार के बयान के वक्त स्थानीय एसएसपी भी मौजूद थे और मीडिया भी लेकिन अब पुलिस उस मामले की जाँच आत्महत्या मानकर कर रही है.
आखिर मीडिया ऐसा क्यों करता है? क्या है जो मीडिया को ऐसा करने पर मजबूर करता है? कभी मौका मिले तो भारतीय मीडिया के स्वामित्व की जानकारी लेने की कोशिश कीजियेगा. पार्टी नेताओं के मीडिया में दखल चौकाने वाले हैं. उस से भी चौंकाने वाले राज्यसभा सीट के वे नोमिनेशन हैं जो ऐसी ख़बरों के एक या दो साल बाद अलग-अलग पार्टियाँ पत्रकारों को देती हैं. खैर! इस पर एक अलग ब्लॉग हो सकता है. फिलहाल इतना ही.
Nicely written to excite the imagination of readers.
There are many ‘interesting’ news for media to keep viewers entertained and keep them away from many other burning questions, like hunger, unemployment, etc!!
Layers of layers are there and if needed created to cover the basic evil of unjust society!
While, I appreciate the above article, will also request the author, to unveil the ‘truth’, covered by the dishonest and even ‘honest’ media and help mass to raise its own political economy consciousness, unite for a real fight for real democracy!!