समय भी अजीब शय है. वैज्ञानिक फंतासियों से लेकर दूसरे गृह पर जीवन की तलाश तक में यह अपनी अलग-अलग भूमिका निभाता रहता है. कहीं यह तीसरी विमा के रूप में सामने आता है तो कहीं इसे आइन्स्टीन के सापेक्षता सिद्धांत के सरलीकरण का हथियार बना लिया जाता है. इन सबसे अलग यह साधारण मानव के जीवन को काटने का एक जरिया भी है. सुबह उठे, कुछ नियत घंटों बाद दिन को दोपहर का रूप दे दिया तो शाम भी नियत समय बाद आ ही जायगी और रात भी. काम से लेकर घर परिवार तक हर चीज जैसे समय से बंधी है.
देखा जाए तो समय है क्या? केवल एक प्रवाह, लगातार कुछ क्षणों का प्रवाह. लेकिन यह क्षण क्या है इसे जानने का कोई तरीका नहीं क्योंकि भूत गुजर चुका और वर्तमान हर पल उस भूत में जुड़ता जा रहा है. जो भूत न हो, जो भविष्य न हो आखिर वह क्षण है क्या? उसे जानने का वैज्ञानिक तरीका मिनट को सैकेंड, सेकण्ड को मिली सैकेंड और उसके आगे नैनो सैकेंड में बांटना हो सकता है. उसके आगे भी शायद इसके हजारों हिस्से किये जा सकें लेकिन यह तो केवल एक गणना बनकर रह जायगा. यह केवल एक जानकारी भर होगा, ज्ञान नहीं. तो आखिर अनुभव कैसे हो? तो क्या करें? इन्द्रियों पर यकीन करें? क्यों नहीं? इन्द्रियों के अनुसार हमारे लिए समय अनुभूत है, जिसका अनुभव नहीं हो सकता है वह समय में नहीं हो सकता. तो अनुभव की भाषा में क्षण क्या है? क्योंकि हमारे अनुभव में तो समय केवल इतिहास है. यानि अगर क्षण को अनुभव में नापें तो यह कुछ ऐसा होना चाहिए जिसमे भूत भविष्य कुछ नहीं है, जो शुद्ध वर्तमान है, इतिहास से परे, यादों की कैद से कहीं दूर, अदूषित, संसार से मुक्त. क्षण केवल एक बिंदु है, समय एक रेखा है.तो क्या रेखा को नापा जा सकता है? हाँ.
आध्यात्मिकता या दार्शनिकता में उतरें तो समय नापने के कई तरीके है और घड़ी उनमे सबसे घटिया तरीका है क्योंकि इसमें किसी भी व्यक्ति का अपना अनुभव सबसे कम होता है और ऐसे में यह नियंत्रण से बाहर और स्व से दूर कही चलती हुई कोई क्रिया है जिसमे कोई शामिल नहीं, जो किसी में शामिल नहीं. कभी समय नापने की इस विधि की निस्सारता देखनी हो तो घडी का सेल निकाल दीजिये, घडी रुक जायगी मगर समय नहीं. भागदौड़ के इस जीवन में घडी जैसे हमारा जीवन यंत्र बनकर रह गई है, एक छोटी सी मशीन ने ईश्वर की जगह ले ली है.
समय नापने का घड़ी से जरा ज्यादा बेहतर तरीका हो सकता है दिन और रात का, सूरज के उगने और सूरज के ढलने का, इंसान के जागने और उसकी नींद के बीच का समय (वैसे भी सोने का बाद समय को नापने की जरूरत कहाँ रहती है?). यह यंत्र के द्वारा नहीं अनुभव के द्वारा समय को नापने का तरीका है. भूख लगने पर खाना, घडी चलने पर नहीं. जीवन को जीना, काटना नहीं.
इसके अलावा एक तरीका हो सकता है बहते हुए पानी के पास बैठकर लहरें गिनते हुए समय काटना या खुद अपनी सांस की गति को देखते हुए समय की गिनती करना मगर यह पूर्ण सजगता की मांग करता है जो केवल योगियों ऋषियों और मुनियों के लिए संभव है. शायद इसीलिए विज्ञान भैरव तंत्र में वर्णित ध्यान की ११२ विधियों में सर्वाधिक ३६ विधियां केवल सांस से सम्बंधित हैं. सांस से जीवन नापना इस रूप से भी उपयोगी है कि यह न केवल सांस को नियंत्रित और शरीर को रोगमुक्त करता है बल्कि एक सजगता का भाव जीवन को अधिक प्रफुल्लित और आनंदपूर्ण बना देता है. मौका मिले तो कभी लगातार आने जाने वाले सांस पर गौर कीजिये. भागदौड़ के जीवन में शायद यह अनुभव पहली बार में न हो इसलिए इस अभ्यास को कम से कम १५ दिन तो जरुर कीजिये. कहीं भी, काम करते वक्त भी, सांस के द्वारा प्राणवायु को अन्दर जाते हुए और आपके फेफड़ों को छूते हुए उसके बाद बाहर आते हुए महसूस करें. अद्भुत अनुभव है. यही समय है.
आपकी मेहनत को सलाम शर्मा जी।
बहुत उम्दा और शिक्षाप्रद लेख
कुछ हट कर तो है……