एक दरिन्दे का ‘संत’ होना…

घटना एक ही है, वर्जन दो हैं.
पहले वर्जन के अनुसार, सन १९७३, मुंबई के HEM अस्पताल में एक नर्स अरुणा के साथ बलात्कार, लूट और हत्या का प्रयास करने का आरोप एक सह-कर्मचारी सोहन लाल के ऊपर लगा. अदालत ने बलात्कार तो नहीं माना लेकिन लूट और हत्या का प्रयास सिद्ध हुआ और सोहन लाल को 7 साल की सजा सुनाई गई. सजा पूरी होने के बाद सोहन लाल दोबारा अस्पताल गया जहाँ अरुणा कोमा की स्थिति में लेटी हुई थी. सोहन लाल ने अरुणा की हत्या का प्रयास दुबारा किया, वह खुद को हुई सजा का बदला अरुणा से लेना चाहता था. इस बार भी सोहन कामयाब नहीं हो पाया, पर यह घटना उसके अन्दर की दरिंदगी दिखाने के लिए काफी थी. इसके बाद सोहन का क्या हुआ इस पर मतभेद हैं. कोई कहता है इसके बाद सोहन को किसी ने मार दिया, किसी के अनुसार वह टीबी से खुद-ब-खुद मर गया तो किसी के अनुसार वह एड्स से मरा. दूसरी तरफ अरुणा शानबाग लगातार 42 साल तक कोमा की हालत में अस्पताल के एक कमरे में सांस लेती रही, केवल सांस, बाकी कुछ बचा नहीं था जिन्दगी जैसा. सुप्रीम कोर्ट में इच्छा मृत्यु की अपील करने के बाद अरुणा इस लड़ाई का चेहरा बनी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपील को ठुकरा दिया. साल 2015 में अस्पताल के कमरे में ही अरुणा ने अंतिम सांस ली. घटनाओं का क्रम अरुणा को कभी पीड़ित, कभी मासूम, तो कभी इच्छा मृत्यु की लड़ाई का चेहरा बनाता रहा. मौत के बाद मीडिया चैनलों ने अरुणा को उसी समाज की बेटी घोषित करने में देर नहीं लगाई जो अरुणा को 42 साल तिल तिल कर मरते देखता रहा, या शायद उसके पास देखने का भी समय नहीं था. कुछ उत्साही लोगों ने अरुणा की आत्मा की शांति के लिए मोमबत्तियां जलाई, जो किसी भी सभ्य समाज में होना चाहिए था. दूसरी तरफ सोहन लाल पूरे समय दरिन्दगी की खाल ओढ़े घूमता रहा, कम से कम मीडिया रिपोर्ट्स और हम सब के जहन में तो ऐसा ही था. ऐसा दरिंदा, जिसे अपने किये पर कोई शर्म या पछतावा नहीं बल्कि गर्व था. ऐसा दरिंदा जिसे कुदरत ने स्वाभाविक न्याय के नियम से उसके कर्मों की सजा दी, एक भयानक मौत के रूप में.

दुसरे वर्जन के अनुसार, एक आदमी है उत्तर प्रदेश के पापरा गाँव में, जो 72 साल की उम्र में अपने जवान बेटे के साथ २५ किलोमीटर साइकल चलाकर रोज मजदूरी पर जाता है, 261 रुपये रोजाना कमाने के लिए ताकि उसका परिवार खाना खा सके. सुबह 6 बजे घर से निकल कर रात 8 बजे के बाद ही वह घर लौट पाता है. 7 साल जेल में बिता चुका यह आदमी जब जेल गया था तो उसकी एक बेटी थी जो उसके जेल में रहने के दौरान मर गई. अपनी सब बुरी आदतें, जिनमे बीड़ी पीना भी शामिल था, वह छोड़ चुका है और उसके गले में उसके गुरु की माला का एक लोकेट है. उसके साथी मजदूर उसे एक चुप रहने वाले, सबकी मदद करने वाले और किसी के साथ तेज आवाज में बात न करने वाले आदमी के रूप में देखते हैं. आदमी का नाम “सोहन लाल” है, यह वही दरिंदा है जिसे आपने अपने टीवी चैनलों पर देखा है. सोहन लाल के पास अब केवल पछतावा बचा है. अस्पताल में दोबारा जाकर अरुणा को मारने का प्रयास करने की घटना को वह वाहियात बताता है. “उस दिन के हादसे के बाद मैं मुंबई में नहीं रह पाया, तो अस्पताल जाने की हिम्मत कहाँ से लाता? मैं लगभग दस साल तक ठीक से सो नहीं पाया, उन्हें मारने की कोशिश मैं कैसे कर सकता हूँ? मैं तो उनसे और अपने भगवान् से अपने किये की माफ़ी मांगना चाहता हूँ”

सोहन के अपने शब्दों में “जो कुछ अरुणा दीदी के साथ हुआ वह एक हादसा था. अरुणा दीदी जानवरों के वार्ड में होने वाले अलग अलग परीक्षणों को देखती थी. मुझे कुत्तों से डर लगता है यह सबको पता था और वार्ड में और भी कर्मचारी थे, लेकिन अरुणा दीदी मुझे ही कुत्तों के काम के लिए बुलाती थी. मैं उनसे कई बार इस बारे में कह चुका था पर वे सोचती थी मैं बहाने बनाता हूँ. जब मैं डरता था तो वे मेरा मजाक उडाती थी, मुझे डांटती थी. कई बार वे अपने हिस्से का काम भी मुझसे करवाती थी जबकि खुद वार्ड बोयज के साथ ताश खेलती रहती थीं. मैं इस बारे में अपने सुपरवाइजर से भी कह चुका था पर मेरी किसी ने नहीं सुनी. एक जमादार की सुनता ही कौन है? उल्टा सुपरवाईजर से कहने के बाद अरुणा दीदी ज्यादा कठोर हो गई थीं. हादसे के दिन मैं उनसे छुट्टी मांगने गया था क्योंकि मेरी सास बहुत बीमार थी और मेरी पत्नी उनके पास जाना चाहती थी. अरुणा दीदी ने न केवल छुट्टी देने से इनकार कर दिया बल्कि उन्होंने यह भी कहा कि अगर मैं बिना बताये छुट्टी पर चला गया तो वे मेरे बारे में लिखित शिकायत करेंगी. उन्होंने कहा कि वे शिकायत में लिखेंगी कि मैं कुछ काम नहीं करता और कुत्तों का खाना भी उनके केज से चुरा लेता हूँ. मैं कुत्तों का खाना कैसे चुरा सकता था जबकि मैं खुद कुत्तों से बहुत डरता था. इस पर मैंने अरुणा दीदी से कहा कि अगर वे शिकायत करेंगी तो मैं भी उनके ताश खेलने के बारे में सबको बता दूंगा. इसके बाद हम दोनों में बहस होने लगी जो बाद में हाथापाई में बदल गई. मैं गुस्से में था और बदकिस्मती से ताकतवर भी. उन्हें इसी हाथापाई में चोट पहुंची होगी जो उनके लिए घातक साबित हुई. मैंने बलात्कार करने की कोशिश नहीं की और न ही उनके गहने लूटने की कोई कोशिश मैंने नहीं की. यह हो सकता है कि हाथापाई में उनके गहने वहीँ कहीं गिर गए हों और किसी और ने उठा लिए हों.”

सोहन लाल आगे कहते हैं “मेरी एक बेटी तब मर गई जब मैं जेल में था और यह सब इसलिए हुआ क्योंकि मैंने अरुणा दीदी को चोट पहुंचाई थी लेकिन वह एक गुस्से का क्षण था. मैं जेल से आने के बाद सालों तक अपनी पत्नी को छू नहीं पाया. मेरे पहले बेटे का जन्म जेल से आने के 14 साल बाद हुआ. मैं आज भी 25 किलोमीटर साइकल चलाकर मजदूरी पर जाता हूँ तो साइकल के हर पैडल के साथ उनसे उस घटना के लिए माफ़ी मांगता हूँ. मैंने वह जानबूझकर नहीं किआ लेकिन अब क्या फर्क पड़ता है?”

सोहन लाल के बेटे के अनुसार “बाबा रोज दो बार प्रार्थना करते हैं लेकिन जब अरुणा जी की इच्छा मृत्यु की अपील सुप्रीम कोर्ट में थी तो वे दिन में 6-7 बार तक प्रार्थना करने लगे थे. अरुणा जी की मृत्यु के बारे में हमें एक हफ्ते बाद पता लगा. गाँव में अखबार कौन पढता है और रोज मजदूरी पर जाने वाले खबरों का करेंगे क्या? मुझे 12 साल की उम्र में मेरी माँ से इस घटना का पता लगा. माँ का कहना था कि मीडिया इस मामले में बाबा को बढ़ा चढ़ा कर दोषी बता रहा है और मुझे बाबा को माफ़ कर देना चाहिए. बाबा मुझे भी संत की तरह लगते हैं लेकिन उन्होंने मुझे स्कूल नहीं भेजा, मैं अपना नाम तक नहीं लिख पाता हूँ, कोई ढंग का काम मैं सारी उम्र नहीं कर पाउँगा मैं उन्हें कैसे माफ़ कर दूँ?” लेकिन शायद सोहन लाल को अरुणा के अलावा किसी और से माफ़ी चाहिए भी नहीं.

सवाल सोहन लाल के भले या बुरे होने का नहीं है, सवाल यह है कि क्या मीडिया किसी भी कहानी के दो पक्ष दिखाना चाहेगा? क्या केवल दरिंदगी के रंग में रंगकर मीडिया अपनी सुविधा के अनुसार सोहन लाल को बेचता रहेगा? या फिर इसी निर्ममता से सुभाष चंद्रा, सुधीर चौधरी, नीरा रादिया और सुधीर पचौरी के बारे में भी मीडिया सच दिखायगा? शायद नहीं क्योंकि वे अपने लोग हैं.

About Satish Sharma 44 Articles
Practising CA. Independent columnist in News Papers. Worked as an editor in Awaz Aapki, an independent media. Taken part in Anna Andolan. Currently living in Roorkee, Uttarakhand.

19 Comments

  1. एक ऐसी घटना जिसका पूरा सच आजतक किसी मीडिया ने नही दिखाया। पढ़ कर अच्छा लगा। मीडिया की हर बात को सच मानने की भूल कोई न करे, इसका एक और उदहारण उस लेख में है। “हाफ ट्रुथ हाफ लाइज” नाम का कॉलम होना चाहिए

  2. बढ़िया लेख है. सच क्या है यह शायद हम पता भी न कर पाए. अरुणा पर एक किताब और एक फिल्म बनी है “कहाणी अरुणा ची” – मराठी में. लेकिन उसमे भी शायद पहला पहलू ही हो

  3. very well written,honest portrayal of our biased media who reports not for truth but for TRPs and saleability

    • भारत की जेलें निर्दोष लोगों से भरी पड़ी हैं, जिन्हे फंसाया गया है.. बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके अपराध बहुत मामूली हैं, उनकी जमानत भी हो चुकी है लेकिन कोई जमानतगीर न होने के कारण जेल में पड़ें हैं. एक लड़का तो मैंने ऐसा देखा , जो अपनी जमानत कैंसिल करवा के जेल में वापस गया, क्योंकि जेल के अस्पताल में उसे वह इंजेक्शन मुफ्त में लग जाता था, जिसको खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे. बिना इंजेक्शन के वह पेट के दर्द से तड़पता था. दूसरी तरफ सैकड़ों हत्याएं करने वाले और अरबों की लूट करने वालों को ये व्यवस्था हीरो बना देती है. कोई ताज्जुब नहीं की अरुणा शानबाग के कोमा में जाने के दोषी को भयानक भेडिए कहने से ही मीडिया को TRP मिलती है. सच्चाई में कोई आकर्षण नहीं है, झूठ में ग्लैमर है.

  4. न वह पहले दरिंदा था न अब संत है .घटनाएँ घट जाती हैं .जीवन अपनी ही चाल चलता है .पूरा सच /पूरी तस्वीर समय बीतने के बाद ,पानी ठहर जाने के बाद ही बनती है .हम लोगों और घटनाओं के बारे में ,बहुत जल्दी ही राय बना लेते हैं …..और अब मीडिया के बारे में क्या कहें उसे तो हर सैकेंड नई धमाकेदार खबर चाहिए .उससे तो उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिए .आपने अच्छा लेख लिखा है इस तरह के लेखों से पाठक में अपना विवेक विकसित होता है .बधाई .

  5. आप ने एक छुपे हुए सच को सब के सामने रखा और लोगों को ये भी समझाया की एकतरफा निर्णय न ले …..

  6. There are thousands of such incidents, if an individual regrets and does self criticism, he should get a chance to live with full honour!
    Having said that, we know, there are 1000s of such incidents but we don’t care why?
    Don’t we know the society in which we live breeds ignorance, superstition, crime and rape continuously? Instead of trying to change individual, which is not to be opposed by any chance, but must put in effort to change the society.
    Reform has failed to bring such society since civilisation, only way out is revolution! Peaceful revolution is desirable but if normal delivery fails, don’t stop midwife, the revolution, to use force for caesarean delivery!

  7. आप ने एक छुपे हुए सच को बहुत सटीक शब्दों में बताया जी हाँ आजकल मीडिया नामक चौथा स्तम्भ आज के समय में गिरावट के शीर्ष स्तर पर है ये लोग मौत और लाशो पर भी TRP तलाश करके इंसानियत को शर्म सार कर रहे है ।
    लेखक के निष्पक्ष शब्द मीडिया के गिरते चरित्र की कलई खोलने और दूसरे पहलू को सामने लाने में मजबूती से उभरे है

  8. आपने आधुनिक समाज के दोनों पहलु सामने रखे है

  9. gud one. god knows wat t truth was. now its an unrevealed history.may b t truth is wit god but everyone got his part of justice.

  10. अभी रात 11.30 बजे न्यूज़-24 पर सोहन लाल का इंटरव्यू चल रहा था।उसकी बातों से तो मामले की तस्वीर कुछ अलग दिखती है।

  11. Bhaiya aapne ye baat bhaut hi acche tarike se express ki hai .hame to iske bare me pata bhi nahi tha ki media aisa double role play karti hai.

  12. वादा किया था आपसे इसलिए कमेंट कर रहा हूँ। और कमेंट है :
    खैर सब ठीक है

  13. Sir, lekin Sohanlal dwara rape kiye jane ki ghatna proven hai. Aur rape koi bhala aadmi to shayad hi karta ho…. fir bhi aap uske sath sahanubhuti rkhte ho ye aapka ati sashakt manviye udar man hai….
    Geeta to yhi kahti hai…bra vykti swayam apne tanav aur darr ke karan jeete ji mar jata jata hai …ya kahen til til marta rhata hai…May God rest her soul in peace…Let sohanlal’s grandson learn a humanity lesson from it and be a noble man.

    • Sir!
      Even in court verdict, court has given him 7 year sentence for attempt to murder and loot. No rape. Rape is not mentioned even in charge sheet.
      Half baked reports of media show the incidence as rape.

      • Completely agree on the point that media does these things for TRP only BUT at the same point of time do you think that we can believe in what is mentioned in the charge sheets filed by our Government officials. Obviously no one knows what exactly happened that day BUT sources claimed that she was menstruating and was effectively ‘dirty’ for him to rape her. So he sodomised and strangled her with a dog chain – cutting off the oxygen supply to her brain and leaving her in a coma. Sohanlal was arrested but wasn’t charged for rape or sodomy since the doctors who examined her stayed mum about the anal rape as instructed by the hospital Dean.
        Reasons:
        1) Because the prosecution and the hospital were squeamish about talking about sodomy in a courtroom.
        2) Because her well-wishers who hoped she would recover felt that the stigma of rape might tarnish her reputation and wanted to spare her and her family that trauma.
        3) Because Shanbaug’s fiance, a junior doctor, who was afraid the rape charges would tarnish her reputation.
        4) Because The then dean of the hospital, Dr. Deshpande chose not to report the anal rape to spare her fiance public “embarrassment”.

  14. उम्दा ब्लॉग । शायद मीडिया भी एक तरफ़ा चीजे ही देख कर दूसरे को कटघरे में खड़ा कर देता है क्षणिक आवेश में दो जिंदगियां तबाह हो गई ।दुखद..
    kirti kapse

  15. Iss ghatnakram ka doosra paksh iss lekh ko padh kar hi jana, hum wahi dekh patey hain jo rukh media hamey dikhata hai…

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