“धारणाएं और अँधानुकरण की प्रवत्ति अक्सर नए अनुभवों को महसूस करने से रोक देती है जो पुराने अनुभवों से कहीं ज्यादा बेहतर होते हैं.” कोई फैसला लेते वक्त इस कथन को अक्सर ध्यान में रखने की कोशिश रखता हूँ. गोआ आकर महसूस हुआ कि अंधानुकरण की यह प्रवत्ति कितनी खतरनाक और कितनी भ्रामक है.
भीड़भाड़ से बचने की कोशिश में किसी भी स्थान पर घूमने जाते वक्त पीक सीजन से बचते हुए कम भीड़भाड़ वाला वक्त चुनने की आदत पहले से रही है और अभी तक के अनुभव अच्छे ही रहे हैं. इसके लिए संसाधनों पर कम दबाव होना जिम्मेदार होता है जिसके कारण बेहतर सेवाएं मिल पाती हैं. साथ ही प्राकृतिक नजारों का मनचाहे तरीके से रसास्वादन का मौका मिलना भी भीड़भड़ वाले समय में संभव नहीं हो पाता.
खैर! इसी आदत के अनुसार दो महीने पहले गोआ की बुकिंग कराई और जुलाई के अंतिम सप्ताह गोआ जाना तय हुआ. कुछ दोस्तों मित्रों से पूछा कि कौन कौन सी जगहें हैं जहाँ जाना चाहिए तो जवाब सुनकर दिल बैठने लगा. सबकी राय यही थी कि “यह तो ऑफ़ सीजन है इस समय बरसात बहुत होती है,कुछ एन्जॉय नहीं कर पाओगे इत्यादि इत्यादि.” गहरे पड़ताल करने पर पता लगा कि उनमें से कोई भी ऑफ सीजन में गोआ नहीं आया था. ऐसे में सर्व ज्ञानी गूगल पर सर्च करके पता करने का मन हुआ. वहां भी कमोबेश इसी तरह की राय मिली. अपवाद के तौर पर कुछेक लोगों ने इस मौसम में भी गोआ को सुंदर बताया था, तो दिल को थोड़ी तसल्ली हुई लेकिन अधिकतर राय नकारात्मक ही थी. कुछ लोगों ने तो यह भी लिखा था कि इस मौसम में तूफ़ान आने की सम्भावना ज्यादा होती है इसलिए बीच भी आम जनता के लिए बंद कर दिए जाते हैं. लो जी! बीच बंद है तो गोआ का करेंगे क्या? खैर! अब तो ओखली में सर दे ही चुके थे. चल दिए.
एअरपोर्ट पर उतरे तो होटल के लिए टैक्सी ली. ड्राइवर ने जैसे ही गियर डाला हमने अपनी आशंकाओं के गोले उस पर दाग दिए. ‘इस मौसम में क्या क्या घूमने का है? बीच बंद तो नहीं होते? बारिश कितनी होती है?’ ड्राइवर ने संतुलित जवाब दिए जिनका मतलब था कि कोई बड़ी समस्या नहीं है आप सब जगह घूम सकते हैं. बरसात होना साधारण घटना है. पर मन की तसल्ली न हुई. उस से पूछा कि यह सीजन ऑफ सीजन है क्या? जवाब बहुत अच्छा मिला इसलिए ज्यों का त्यों लिख रहा हूँ “साहब! मान लीजिये गोआ में पचास लोगों के रहने लायक जगह है और एक समय पर भेड़चाल के कारण 100 लोग आ जाते हैं तो उसे सब लोग सीजन कह देते हैं. दुसरे समय पर एक दुसरे की देखा देखी कम लोग आते हैं लेकिन तब भी यहाँ कम से कम 40 लोग आते हैं तो इसे ऑफ़ सीजन कह देते हैं. लेकिन असलियत यही है कि यह जगह 50 लोगों के रहने लायक है और यहाँ कभी भी 40 से कम लोग नहीं होते. वैसे भी हमारे लिए तो सब बराबर है सिवाय इसके कि सीजन में हम रेट डबल कर देते हैं. हो हो हो हो हो”
होटल पहुंचे तो होटल लगभग फुल था. आराम किआ और अगले दिन सुबह जल्दी उठा तो बिटिया और पत्नी जी निद्रालीन थीं इसलिए बीच पर अकेले जाना तय किया. मौसम बरसात आने के संकेत दे रहा था इसलिए छाता लेकर गया. जो देखा उसे शब्दों में ब्यान नहीं कर सकता. शांत समुद्र, अथाह जलराशि, बीच पर गिने चुने लोग (फिर भी कुछ सौ तो थे), चिड़ियों का कलरव, उसके बाद बरसात के मौसम का अचानक बदल जाना और सुबह का उगता सूरज. मन में अचानक सवाल आया कि ऑफ सीजन में जितना मेरे हिस्से आ रहा है क्या ऐसा ही सीजन में आता? लाइफ गार्ड से पूछने पर जवाब मिला “नहीं”.
होटल में आने के कुछ ही घण्टों बाद मैं पूरे स्टाफ को नाम से जानता हूँ और वे मुझे और मेरी बेटी को. होटल के स्वीमिंग पूल में नहाते हुए ‘पीहू’ का ध्यान रखने का समय भी स्टाफ के पास है क्योंकि इस वक्त काम उनकी क्षमता के अनुसार है. दीपक रूम सर्विस के साथ दो मिनट बातचीत करते हुए रेस्टोरेंट से कोई ख़ास डिश मंगाने के बारे में सुझाव दे पाते हैं तो होटल के शेफ पंकज उनके बनाये खाने की तारीफ सुनने के लिए रेस्टोरेंट में किया फोन सुन पाते हैं. इस समय यह भी संभव हैं कि आप शेफ के द्वारा ‘पालक पनीर’ का सुझाव देने पर कहें कि मुझे यह ज्यादा पसंद नहीं तो शेफ कहे सर तब तो मैं आपको यही खिलाता हूँ. आप एक बार चख के देखिये आपको अच्छा लगेगा. और वह सही साबित हो और आप एक बार और तारीफ करने पर बाध्य हों. सुहेल साकिर सबसे बात संभव है क्योंकि काम के साथ साथ उनके पास थोडा समय बच जाता है. सीजन में उनके कहने के अनुसार ‘वे दिन भर एक टांग पर रहते हैं’. क्योंकि यह ऑफ सीजन है. (हालाँकि स्टाफ में से कोई यह मानने को तैयार नहीं हुआ कि यह ऑफ सीजन है.)
दिन भर घूमे तो लगा ऑफ सीजन है कहाँ? न बाजार में लोग कम थे न बीच पर, होटल भी लगभग पूरा भरा हुआ है, जहाँ घूमने गए वहां भी हम अकेले न थे. सब कुछ तो ऐसे चल रहा था जैसे यही साधारण हो, हाँ मौसम की अनिश्चितता जरुर थी. अभी मौसम साफ़ है तो आधे घण्टे बाद भी यही रहेगा इसकी कोई गारंटी नहीं, लेकिन एक बार बरसात शुरू हुई तो आधे घण्टे में मौसम फिर साफ़ होगा इसकी गारंटी जरूर है. तो क्या मौसम की अनिश्चितता से हम इतना डरते हैं? लेकिन जीवन में तो कुछ भी निश्चित नहीं. मन अपनी मूर्खता पर हंस रहा है और मैं बीच पर छाता लिए बारिश का आनंद उठाते हुए सुबह के साढ़े 5 बजे यह सब लिख रहा हूँ.
बरसात के मौसम में गोआ राजकपूर की किसी फ़िल्म में झरने के नीचे फिल्माए गाने जैसा महसूस हो रहा है, बरसात इसकी मादकता को और उभार रही है. इसे जिसने देखा है वही समझ सकता है. बन्द स्टूडियों में आभासी झरनों के नीचे कृत्रिम तरीके से बदन को उभारती फिल्मोग्राफी की इस नजारे से कोई तुलना नहीं ही सकती. इसलिए नकली सौंदर्य के उपासक बरसात में गोआ आने से बचे क्योंकि यह असली नशा है, सर पे चढ़ गया तो उतरना मुश्किल है.
Great.