राम जेठमलानी v/s भाजपा – बनते बिगड़ते संबंधों की एक दिलचस्प दास्तान

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एक खबर आई। राम जेठमलानी ने भाजपा के संसदीय बोर्ड के सदस्यों पर पचास पचास लाख का मानहानि का दावा ठोक दिया।खबर हैरान कर देने वाली थी। उस से भी हैरान कर देने वाली थी वे प्रतिक्रियाएं जो इस मामले पर आईं। कुछ ने कहा जेठमलानी सच का साथ देते हैं। कुछ ने कहा यह केवल पब्लिसिटी स्टंट है। पहले जेठमलानी को जानना जरूरी है उसके बाद भाजपा को। तब कहीं जाकर यह सोचना वाजिब होगा कि यह केवल सनसनी फैलाने वाला मामला है या वाकई जेठमलानी गंभीर हैं?

कई पुरानी तस्वीरें जहन में उभर आई।भाजपा की पहली सरकार में मंत्री पद संभाले व्यक्ति से लेकर भाजपा में शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ने के फैसले तक कुछ भी साधारण नहीं किया राम जेठमलानी ने।

अविभाजित भारत के सिंध में 1923 में जन्मे जेठमलानी सत्रह साल की उम्र में वकील बने।एक रिफ्युजी के तौर पर भारत आये जेठमलानी हमेशा चर्चा में रहे।बात चाहे हिन्दू परिवार में दो शादियों की हो या पचास के दशक में स्मगलरों का वकील कहलाने की। बड़े से बड़ा विवादास्पद और हाई प्रोफाइल केस वह लड़ चुके हैं। कई बार देशद्रोही वकील का तमगा भी मिला।इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के हत्यारों से लेकर हाजी मस्तान और अफजल गुरु तक जेठमलानी के क्लाइंट रहे हैं। हर्षद मेहता और केतन पारिख जिन्होंने भारतीय शेयर बाजार को एक अरसा उँगलियों पर नचाया भी इस लम्बी लिस्ट में शामिल हैं। कई बड़े फैसले, जो न्याय की दुनिया मील का पत्थर साबित हुए, उनकी वकील के तौर पर काबिलियत के गवाह बने। लाख विपरीत परिस्थितियों, विरोधों के बावजूद कभी लगा नहीं कि राम जेठमलानी डिग रहे हैं।

दूसरी तरफ भाजपा, जिसने 1971 में जनसंघ के तौर पर पहली बार जेठमलानी को उल्हासनगर से टिकट दिया था और 1996 में मंत्री पद, के लिए यह हमला अप्रत्याशित भी है और परेशान कर देने वाला भी।राम जेठमलानी, जो आपातकाल के खिलाफ विरोध में भाजपा का बड़ा हथियार रहे, भले ही अटल बिहारी वाजपेयी का विशवास कभी ना जीत पाए हों पर लाल कृष्ण आडवाणी के करीबी हमेशा रहे।यही कारण है कि हर भाजपा सरकार में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी गई। फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि उन्हीं जेठमलानी ने भाजपा और लाल कृष्ण आडवाणी के खिलाफ ना सिर्फ बगावत शुरू कर दी बल्कि सीधा निशाना आडवाणी पर ही साध दिया।

राम जेठमलानी हमेशा दिल की बात कहने वाले और उस बात की कीमत वसूलने वाले राजनेता और वकील के तौर पर जाने जाते हैं।इसके लिए 27 जुलाई 2011 का पाकिस्तानी दूतावास द्वारा आयोजित वह रात्रिभोज याद करने की जरूरत है जब पाकिस्तानी विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार और चीनी राजदूत के सामने भारत के राज्य सभा सदस्य के तौर पर भी जेठमलानी खुले शब्दों में यह कहने से नहीं हिचकिचाए थे कि “चीन भारत और पाकिस्तान  का संयुक्त दुश्न्मन है और पाकिस्तान सरकार को यह बात समझने की जरूरत है”।

जब नितिन गडकरी पर व्यावसायिक हितों के लिए राजनीति के इस्तेमाल के आरोप लगे तो खुला विरोध करने वाले पहले शख्स जेठमलानी ही थे।इसी कड़ी में संगठन के पदाधिकारियों को लिखी कड़ी चिट्ठी के सार्वजनिक हो जाने का खामियाजा पार्टी से निष्काशन के रूप में भुगतना पडा।

अब जबकि यह जंग अदालत के दरवाजे तक पहुँच गई है देखना दिलचस्प होगा कि नतीजा भारतीय राजनीति और लोकतंत्र पर क्या असर डालता है?

देखना होगा भारतीय न्याय तंत्र की जड़े हिला देने वाला सबसे महँगा यह वकील क्या यही काम भारतीय राजनीति के साथ कर सकता है?

About Satish Sharma 44 Articles
Practising CA. Independent columnist in News Papers. Worked as an editor in Awaz Aapki, an independent media. Taken part in Anna Andolan. Currently living in Roorkee, Uttarakhand.

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