वो तरतीब चरागों की…..

ओशो के शुरूआती सफर के दिनों में एक बार कवि सुमित्रानंदन पन्त ने ओशो से पूछा था-“भारत के चैतन्य के आकाश के बारह नक्षत्र कौन कौन से हैं?”

ओशो ने गिना दिया-“कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गोरख, पतंजलि, मीरा, नानक, कबीर, नागार्जुन, शंकर, रामकृष्ण परमहंस और कृष्णमूर्ति.”

पन्त ने पूछा-“आपने इनमें राम को क्यों नहीं रखा?”

उत्तर मिला-“चूंकि आपने केवल बारह नाम मांगे हैं इसलिए बहुतों को छोड़ना पड़ा. मैंने केवल वे नाम लिए हैं जिनकी कोई मौलिक देन है. राम की कोई मौलिक देन नहीं है. कृष्ण की मौलिक देन है इसलिए उन्हें पूर्णावतार कहा गया है राम को नहीं कहा.”

पन्त ने कहा-“फिर ऐसा करें मुझे सात नाम दें.”

ओशो ने सात नाम गिना दिए-“कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, महावीर, शंकर, गोरख, कबीर.”

पन्त ने पूछा-“जो नाम आपने छोड़े वे किस आधार पर छोड़े?”

उत्तर मिला-“नागार्जुन बुद्ध में समाहित हैं. जो बुद्ध में बीज-रूप था, उसी को नागार्जुन ने प्रगट किया है. बुद्ध तो गंगोत्री है, नागार्जुन तो फिर गंगा के रास्ते पर आये हुए एक तीर्थ स्‍थल है—प्यारे है, लेकिन अगर छोड़ना हो तो तीर्थ स्थल छोड़े जा सकते है. गंगोत्री नहीं छोड़ी जा सकती है. ऐसे ही कृष्णमूर्ति भी बुद्ध में समा जाते है. रामकृष्ण, कृष्ण में सरलता से लीन हो जाते है. मीरा और नानक, कबीर में लीन हो जाते है. ये दोनों कबीर की ही शाखायें है. कबीर में जो इक्कठ्ठा था, वह आधा नानक में प्रगट हुआ और आधा मीरा में. नानक में कबीर का पुरूष रूप प्रगट हुआ है—इसलिए सारा सिक्ख धर्म क्षत्रिय का धर्म हो गया, योद्धा का. मीरा में कबीर का स्‍त्रैण रूप प्रगट हुआ है—इसलिए सारा माधुर्य, सारी सुगंध सारा सुवास, सारा संगीत,मीरा के पैरों में धुँघरू बन कर बजा है. मीरा के इकतारे पर कबीर की नारी गाई है, नानक में कबीर का पुरूष रूप बोला है. दोनों कबीर में समाहित हो जाते है. इस तरह मैंने सात की सूची बनाई है.

पन्त की उत्सुकता बढ़ी. उन्होंने कहा-“अगर पांच की सूची बनानी हो तो?”

ओशो ने पांच की सूची उन्हें थमा दी और साथ ही छंटाई का कारण भी बता दिया-  “कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, महावीर,गोरख. क्योंकि कबीर को गोरख में लीन किया जा सकता है. गोरख मूल है. गोरख नहीं छोड़े जा सकता. और शंकर तो कृष्ण में सरलता से लीन हो जाते है. कृष्ण के ही एक अंग की व्याख्या है, कृष्ण के ही एक अंग का दार्शनिक विवेचन है.”

अब पन्त ने और कठिन परीक्षा रखी-“अगर इनमे से भी कोई एक हटाना हो तो?”

ओशो ने कहा-“एक और हटाने को कहोगे तो मैं महावीर का नाम लूँगा क्‍योंकि महावीर बुद्ध से बहुत भिन्न नहीं है. थोडे ही भिन्न है. जरा-सा ही भेद है. वह भी अभिव्यक्ति का भेद है. बुद्ध की महिमा में महावीर की महिमा लीन हो सकती है. एक महावीर को हटाकर मैं चार नाम रखना चाहूँगा- कृष्ण, पतंजलि, बुद्ध, गोरख…..”

पन्त ने मुस्कुराते हुए फिर पूछा-“तीन नाम चुनने हों तो किस किस को चुनेंगे?”

ओशो ने उत्तर दिया-“ अब असंभव है. अब इन चार में से किसी को भी छोड़ा नहीं जा सकता. जैसे चार दिशाएं है, ऐसे ये चार व्यक्तित्व हैं. जैसे काल और क्षेत्र के चार आयाम है, ऐसे ये चार आयाम है. जैसे परमात्‍मा की हमने चार भुजाओं सोची है, ऐसी ये चार भुजाएं हैं. परमात्मा तो एक ही है, लेकिन उस एक की चार भुजाएं है. अब इनमें से कुछ छोड़ना तो हाथ काटने जैसा है. यह मैं न कर सकूंगा. अभी तक में आपकी बात मानकर चलता रहा, संख्या कम करता रहा. क्योंकि अभी तक जो अलग करना पडा वह वस्त्र था, अब अंग तोड़ने पड़ेंगे. अंग-भंग मैं न कर सकूंगा. ऐसी हिंसा आप न करवायें.”

About Satish Sharma 44 Articles
Practising CA. Independent columnist in News Papers. Worked as an editor in Awaz Aapki, an independent media. Taken part in Anna Andolan. Currently living in Roorkee, Uttarakhand.

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