महिला-पुरुष समानता : कितना भ्रम? कितना सच?

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हमारे आस-पास बहुत सी ऐसी बातें और धारणाएं हैं जिन पर हम अक्सर बिना सोच विचार किये यकीन कर लेते हैं. इस तथाकथित यकीन के पीछे भी अलग अलग कारण हो सकते हैं. कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन पर हम आँख मूँद कर इसलिए यकीन कर लेते हैं क्योंकि उन्हें हम बचपन से सुनते आये हैं (जैसा कि हमारे पुरखे सुनते आये थे.) तो कुछ बातों के विरोध में हम इसलिए नहीं बोलते क्योंकि हम सामाजिक रूप से अलग विचारधारा के साथ खड़े होने का साहस नहीं दिखा पाते. जैसे हम अक्सर यह कहते या सुनते हैं कि महिला और पुरुष एक समान होते हैं. महिला और पुरुष समानता का यह विचार इतना खूबसूरत है कि कई राजनैतिक पार्टियां इस के आसपास अपना एजेंडा बना लेती हैं तो कई राजनेता इस कथन के सहारे भौगौलिक दूरियों को मिटाने का यत्न करते हैं. जैसा कि अमेरिका के राष्ट्रपति जोर्ज बुश ने किया जब वे 2001 में अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव जीते. उनके धन्यवाद भाषण के वे शब्द आज भी याद किये जाते हैं. उन्होंने कहा था “हम भले ही किसी भी जाति से हों, किसी भी प्रदेश से हों, महिला हों या पुरुष हों, एक बात हम सबमे एक समान हैं और इसे वैज्ञानिक भी मानते हैं, और वह बात है कि शारीरिक संरचना के आधार पर हम सब 99.9% एक समान हैं.” लेकिन शायद ही कभी हमने इस कथन के पीछे झाँक कर देखा हो. क्या वाकई महिला और पुरुष एक समान हैं? क्या उनमें कोई अंतर नहीं? क्या कोई ऐसा काम नहीं जिसे केवल महिलायें या पुरुष कर पाते हो?

 चलिए शुरुआत वहां से करते हैं जहाँ से जीवन की शुरुआत होती है यानी वह पल जब माँ के गर्भ में हम सब के जीवन की शुरुआत होती है, यानी एक शुक्राणु के मिलने से अंदाज का निषेचन.
 
 यह बात शायद सब जानते हैं कि इन दो शुक्राणुओं के मिलने से शरीर के अन्दर पहली कोशिका का जन्म होता है और यही एक कोशिका बाद में दो में विभाजित होती है और दो से चार में, चार से आठ में. विभाजन का यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक कि एक शिशु का पूरा शरीर तैयार नहीं हो जाता. एक पूरे शरीर के तैयार होने के वक्त इसमें लगभग दस हजार करोड़ कोशिकाएं तैयार हो चुकी होती हैं और ये सभी कोशिकाएं उसी एक मूल कोशिका के विभाजन से बनी होती हैं जो पहले दो शुक्राणुओं के मिलन से बनी थी. इन सभी कोशिकाओं में एक बात समान होती है और वह है गुणसूत्रों के वे 23 जोड़े, जो पहले शुक्राणु के मिलन के वक्त बनते है. अब जरा देखते हैं कि एक लड़की और एक लड़के के पैदा होने की क्रिया में क्या अंतर होता है?
 यह बात सब जानते होंगे (बचपन में पढ़े जीव विज्ञान की बदौलत) कि एक लड़के या लड़की के पैदा होने में इन 23 जोड़े गुणसूत्रों के 22 जोड़े एक समान होते हैं. इन 22 जोड़ों में दोनों क्रोमोजोम XX होते हैं. लिंग निर्धारण में अहम् भूमिका 23 वें जोड़े की होती है, जहाँ महिला में यह 23वा जोड़ा बड़ी खूबसूरती से मिलते जुलते XX क्रोमोजोम्स का जोड़ा रहता है जबकि पुरुषों में यह एक बेमेल जोड़ा यानी XY होता है. इसमें Y क्रोमोजोम आकार में छोटा होता है.
 

XX गुणसूत्रों का जोड़ा

XY गुणसूत्रों का जोड़ा

 यही 23 गुणसूत्रों के जोड़े किसी भी इंसान के शरीर हर कोशिका में पाए जाते हैं और इनमें इंसान की आनुवंशिक जानकारी एकत्रित होती हैं जिसे हम साधारण भाषा में डीएनए कहते हैं. यानी पुरुष और महिलाओं के डीएनए में मूलभूत रूप से असमानता है. डीएनए की इस असमानता के बावजूद दो पुरुष या दो महिलाओं के मामले में यह लगभग 99.9% तक समान रहता है. जबकि एक पुरुष और एक महिला में यह केवल 98.5% सामान रहता है. इस तरह केवल लिंग परिवर्तन के साथ .1% का यह अंतर अचानक बढ़कर 1.5% तक पहुँच जाता है यानि 15 गुना ज्यादा. महिलाओं के साथ पुरुषों के डीएनए की समानता का यह अनुपात अगर आपको अधिक लगता है तो कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों पर निगाह डालने की जरुरत है जो एक पुरुष और एक नर चिम्पांजी के डीएनए को ९८ प्रतिशत से अधिक समान बताते हैं. महिला और पुरुषों के बीच डीएनए की यह असमानता क्या किसी और तरह से भी सामने आती है?
 कुछ और बातें हैं जिनसे इस बात को बल मिलता है कि यह असमानता आगे भी बनी रहती है. अगर हम बात बीमारियों की करें तो कुछ ख़ास बीमारियाँ पुरुषों में ज्यादा होती हैं तो कुछ ख़ास बीमारियाँ महिलाओं में ज्यादा होती हैं. उदाहरण के तौर पर ऑटिज्म यानि मानसिक रूप से कमजोर होने की बीमारी महिलाओं में मुकाबले पुरुषों में अधिक पाई जाती है. आंकड़े बताते हैं कि पागलपन या ऑटिज्म के मामले में एक महिला के मुकाबले कम से कम पांच पुरुष पीड़ित हैं. वहीँ आर्थराइटिस यानी जोड़ों में दर्द और अन्य समस्याओं की बात करें तो एक पुरुष के मुकाबले 2 से 3 महिलायें इस रोग से पीड़ित हैं. इसी तरह ल्युपस नामक बीमारी, जिसमें शरीर के किसी भी ख़ास अंग को नुकसान पहुँचने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा पाई जाती है. आंकड़े बताते हैं कि ल्युपस के हर एक पुरुष मरीज के साथ कम से कम 6 महिलाएं ल्युपस की शिकार हैं. यहाँ ऐसी किसी बीमारी का जिक्र नहीं किया गया है जो महिला और पुरुषों में शारीरिक भिन्नता के आधार पर पैदा हो होती हो. अन्यथा आंकड़े यह भी कहते हैं कि स्तन कैंसर केवल महिलाओं में होता है. खैर यह केवल मजाक था, आगे बढ़ते हैं.
 बीमारियों को और ध्यान से देखें तो यह अंतर केवल महिला और पुरुषों के बीच बीमारी का शिकार होने तक नहीं है बल्कि कुछ बीमारियाँ पुरुषों को छोटी उम्र में नुक्सान पहुंचाती हैं तो महिलाओं को बड़ी उम्र में. जैसे डायलेटेड कार्डियोमायोपैथी (Dilated Cardiomyopathy) दिल से सम्बंधित एक बीमारी है जिसमें दिल की बाहरी दीवारें पतली हो जाती हैं और बाद में दिल का आकार बढ़ने लगता है. इस बीमारी का अध्ययन बताता है कि इस बीमारी के होने पर अधिक उम्र में ज्यादा नुक्सान की संभावना है परन्तु बढती उम्र में नुक्सान की यह संभावना महिलाओं में कम और पुरुषों में कहीं ज्यादा है. यानी इस बीमारी के होने पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के बचने की संभावना अधिक है, जैसा कि ग्राफ में बताया गया है.
 
 बीमारियों के स्तर की यह समानता व्यवहार में भी सामने आती है. उदाहरण के लिए आप विभिन्न दुर्घटनाओं के यूट्यूब पर मौजूद वीडियो देख सकते हैं. पुरुष ड्राइवर होने पर अधिकाँश मामलों में गाड़ी जोर से आती है और टक्कर के बाद रुक जाती है. महिलाओं के केस में यह एक्सीडेंट कम स्पीड पर होता है लेकिन एक बार टक्कर लग जाने पर महिलायें ब्रेक की बजाय एक्सीलीटर पर पैर दबा देती है और गाड़ी ज्यादा तेज चलती है. दुर्घटना होने पर ब्रेक की बजाय स्पीड पैदल दबाने की यह घटना बताती है कि पुरुष और महिलाएं एक सी परिस्थिति में अलग अलग तरीके से व्यवहार करते हैं. तो फिर समानता है कहाँ? कहीं नहीं. जी!
 पुरुष और महिलायें समान नहीं है, अलग अलग हैं. दोनों का सम्मान जरूरी है. लेकिन दोनों को एक समान बनाने की यह अंधी दौड़ महिलाओं को ज्यादा नुक्सान पहुंचा रही है. बात चाहे विभिन्न व्यवसायों में उतरने की हो या व्यसनों में, पुरुषों से बराबरी की इस दौड़ में महिलायें केवल दोयम दर्जे के पुरुष के रूप में सामने आ रही हैं. तो इस भ्रम को अपने मन से निकालिए. महिला पुरुष बराबर नहीं हैं, बराबर नहीं हो सकते. दोनों अलग हैं और बराबर सम्मान के अधिकारी हैं. पहले दोनों को अलग अलग समझना शुरू करें, तुलना खुद-ब-खुद बंद हो जायगी और बेहतरी का भ्रम भी दिमाग से निकल जायगा. (अंतिम वाक्य महिलाओं और पुरुषों पर समान रूप से लागू होता है.)
 बाकी बातें अगली बार…..
About Satish Sharma 44 Articles
Practising CA. Independent columnist in News Papers. Worked as an editor in Awaz Aapki, an independent media. Taken part in Anna Andolan. Currently living in Roorkee, Uttarakhand.

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